बंकिमचंद्र
चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगाल
साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी उपकृत हुई है। उनकी
लोकप्रियता का यह आलम है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से उनके उपन्यास
विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो रहे हैं और कई-कई संस्करण प्रकाशित हो
रहे हैं। उनके उपन्यासों में नारी की अन्तर्वेदना व उसकी शक्तिमत्ता
बेहद प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त हुई है। उनके उपन्यासों में नारी की
गरिमा को नयी पहचान मिली है और भारतीय इतिहास को समझने की नयी दृष्टि।
वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर
ड्यूमा माने जाते हैं।
ब्रह्मचारी ने इस पर
दीर्घ-निश्वास छोड़कर कहा, ‘‘माँ इस घोर व्रत में बलिदान है हम सबको
अपनी बलि देनी पड़ेगी। मैं मरूंगा, जीवानंद, भवानंद, सभी मरेंगे, लगता
है माँ तुम भी मरोगी। किन्तु देखो, काम करके मरना होगा, बिना काम किये
मरना क्या अच्छा है ? मैंन केवल देश को माँ कहा है, इसके अलावा और
किसी को माँ नहीं कहा। क्योंकि उसी सुजला, सुफला धरनी के अलावा अन्य
मातृक है। और तुम्हें माँ कहा है, तुम माँ होकर सन्तान का काम करती
हो। जिससे कार्योद्धार हो, वही करना, जीवानंद के प्राणों की रक्षा
करना।’’ यह कह कर सत्यानंद ‘हरे मुरारे मधुकैटभारे’ गाते-गाते वहां से
चले गए।
काम करके मरना होगा, बिना काम किये मरना क्या अच्छा है
Rishabh soni Sep 6th, 2013 @ 06:18 AM
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anav ranjan Sep 7th, 2013 @ 08:43 AM
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Yugal kishore tumrali Sep 6th, 2013 @ 06:54 AM
काम करके मरना होगा, बिना काम किये मरना क्या अच्छा है
Rishabh soni Sep 6th, 2013 @ 06:18 AM
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